यह जलालुद्दीन खिलजी के समय छज्जू के विद्रोह के दमन व रणथम्भौर अभियान के मध्य काल की घटना (1290-91) है।
बरनी, जो सीद्दी मौला के वध को 'अन्यायपूर्ण हत्या' बताता है, "मौला के कुचले जाने के दिन ऐसा भयंकर तूफान आया कि संसार में अंधेरा छा गया और इसके बाद भीषण सूखे की स्थिति पैदा हो गई। अनाज का मूल्य एक टंका प्रति सेर हो गया, लोग रोटी का स्वाद भी भूल गये। 
शिवालिक पहाड़ियों के किसान दिल्ली में एकत्र हो गए, 20-20, 30-30 के समूहों में उन्होंने यमुना में डूब कर प्राण त्यागे। उस दिन की चरम परिणति सुल्तान की उसके भतीजे अलाउद्दीन द्वारा हत्या थी।"