कौटिल्य का सामान्य परिचय- अर्थशास्त्र के रचयिता एवं महान राजनीतिक एवं
अर्थशास्त्र में निपुण कौटिल्य के बचपन का नाम विष्णुगुप्त था उनके पिता का
नाम चरण होने के कारण उनको चाणक्य भी कहा जाता है। हेमचंद्र कृत
अभिधान चिंतामणि में चाणक्य के आठ नाम बताए गए है पुराणों में कौटिल्य को
द्विजर्षभ अर्थात श्रेष्ठ ब्राह्मण कहा गया है। कौटिल्य आश्रम व्यवस्था के
महान पोषक थे कौटिल्य को भारत का मैकियावेली भी कहा जाता है
कौटिल्य ने मगध से नंद वंश को समाप्त करके मौर्य वंश की स्थापना में
चंद्रगुप्त मौर्य की सहायता की जिसका विवरण विशाखदत्त की मुद्राराक्षस में मिलता
है कौटिल्य की पुस्तक अर्थशास्त्र में मौर्य काल की प्रशासनिक व्यवस्था का
विस्तृत विवरण दिया गया है यह पुस्तक भारत में राजनीतिक व्यवस्था का मूल रही है
अर्थशास्त्र की रचना संस्कृत भाषा में गद्य पद्य मिश्रित शैली में हुई है जिसमें
6000 श्लोक 180 प्रकरण और 141 अध्याय है एवं 15 अधिकरण है।
कौटिल्य ने राजा की दिनचर्या में इतिहास श्रमण को आवश्यक बताया
है। कौटिल्य ने चार आश्रम बताएं है। अर्थशास्त्र मे बताया
गया है कि कैसे राजा को राज्य प्राप्त करना चाहिए एवं सहेज कर रखना
चाहिए। कौटिल्य के अर्थशास्त्र की तुलना मैकियावेली की रचना
"प्रिंस" से की जाती है 1915 में इस पुस्तक का सबसे पहले अंग्रेजी अनुवाद
प्रकाशित हुआ।
सर्वप्रथम 1905 में तंजौर के एक ब्राह्मण ने अर्थशास्त्र की हस्तलिखित पांडुलिपि
मैसूर रियासत के पुस्तकालय के श्याम शास्त्री को भेंट की जिन्होंने 1909 में इस
ग्रंथ का प्रकाशन किया 15 अधिकरण में विभाजित इस पुस्तक की विषय वस्तु निम्नलिखित
है।
प्रथम अधिकरण (विनयाधिकरण) में राज्य की समस्याओं राजस्व प्रशासन आदि की विवेचना
है।
द्वितीय अधिकरण (अध्यक्षप्रचार) में राज्य के प्रशासनिक विभागों जैसे तीर्थ एवं अध्यक्ष ,संगठनों और
पदाधिकारी की विवेचना की गई है
तीसरा अधिकरण (धर्मस्थीयाधिकरण) में दीवानी न्यायालय प्रणाली की विवेचना की गई है।
चौथे अधिकरण (कंटकशोधन) में फौजदारी न्यायालय प्रणाली का वर्णन मिलता है
पाँचवे अधिग्रहण (वृत्ताधिकरण) में राजकीय कर्मचारियों के अनुशासन,अधिकारों एवं दायित्वों का वर्णन
किया गया है
छठे अधिकरण (योन्यधिकरण) में राज्य की साथ प्रवृत्तियां या अंगों अर्थात राज के सप्तांग
सिद्धांत एवं मंडल सिद्धांत का वर्णन किया गया है (सप्तांग सिद्धांत - राजा ,अमात्य, राष्ट्र /जनपद, दुर्ग, कोष, दंड और मित्र)
सातवें अधिकरण (षाड्गुण्य) में नीति के उद्देश्य एवं प्रकारों पर विचार किया गया है
(षड्गुण - संधि, विग्रह, यान , आसन, संश्रय और द्वैधीभाव)
आठवीं अधिकरण (व्यसनाधिकरण) में व्यसनों (घटक दुर्गुण) के निरूपण संबंधी व्यवस्थाओं का विवेचन
है
नवें अधिकरण (अभियास्यत्कर्माधिकरणा) में विभिन्न आपत्तियों से राज्य के बचाव की नीतियों का वर्णन है
दसवां अधिकरण (संग्रामाधिकरण) युद्ध नीति के बारे में है।
ग्यारहवाँ अधिकरण (संघवृत्ताधिकर)
शत्रु को भेद डालकर नष्ट करने तथा उसे वश में करने के बारे में
है
बारहवाँ अधिकरण (आबलीयसाधिकरण) राज्य द्वारा अपनाए जाने वाले रक्षा उपायों पर संबंधित है
तेरहवाँ अधिकरण (दुर्गलम्भोपायाधिकरण) दुर्गा प्राप्ति के उपाय पर आधारित है
चौहदवें अधिकरण (औपनिषदिकाधिकरण) शत्रु के नाश के लिए विषैली औषधीय मंत्रों आदि का वर्णन है
पन्द्रहवाँ अधिकरण (तंत्रयुक्त्यधिकरण) अर्थशास्त्र काे अर्थ की सामान्य विवेचना है यह भी बताया गया
है कि नंद राज्य को नष्ट करने वाले कौटिल्य ने इस अर्थशास्त्र ग्रंथ की
रचना की है।