स्थिति- बीजापुर (कर्नाटक) के मेगुती मंदिर की पश्चिमी दीवार पर
भाषा- संस्कृत
लेखक- रविकीर्ति
लिपि- दक्षिणी ब्राह्मी
कुल पंक्तियां- 19
कुल पद्य-37
वर्ष- यह अभिलेख 634 ई. ( शक संवत् 556) में लिखा गया था।
विशेष - (1) इसी लेख में कालिदास एवं भारवि का उल्लेख मिलता है ।
(2) इसी लेख में 'महाभारत के युद्ध' तथा कलियुग के शक शासकों के संवत् के 556 वर्ष के बाद से काल गणना अभिलेख लेखन की तिथि के सन्दर्भ में की गई है। इस अभिलेख में शक संवत और कली संवत दोनों में तिथियाँ दी गई है।
लेख में सर्वप्रथम रविकीर्ति भगवान जिनेन्द्र (महावीर) को नमस्कार किया है। इसमें पुलकेशिन प्रथम द्वारा 'अश्वमेध' यज्ञ किये जाने का वर्णन है। लेख में पुलकेशिन प्रथम को वातापिपुर रूपी वधू का स्वामी कहा गया हैं। लेख में चालुक्य शासकों की उपाधि पृथ्वीवल्लभ बतायी गयी है। लेख में पुलकेशिन द्वितीय को सत्याश्रय कहा गया है जिसने इन्द्र के समतुल्य त्रिशक्ति को विजित कर लिया था। पुलकेशिन अपनी समता 'इन्द्र' से करता था । लेख में उसने नहुष के अनुभाव लक्ष्मी द्वारा अभिलषित बताया गया है। उसने 9 तथा 90,000 गांवों पर अपनी संप्रभुता स्थापित की। उसकी सेना का भय कलिंग एवं कोशल में व्याप्त था। इसी लेख से ज्ञात होता है कि हर्ष अपनी गजसेना के साथ पुलकेशिन द्वितीय से हारा था।
इसमें वर्णित है कि 'भयविगलित हर्षों येन चाकारि हर्षः' अर्थात् युद्ध में पुलकेशिन् द्वारा हर्ष के हाथियों के मारे जाने के कारण वह (हर्ष) भयभीत होकर हर्षरहित (आनन्दविहीन) गया। एहोल लेख में सात प्रकार के व्यसनों ( पापों ) की चर्चा है । इसमें चालुक्य शासकों जयसिंह, रणराग, पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मा, मंगलेश तथा पुलकेशिन द्वितीय क्रमशः विवरण मिलता है। अभिलेख में पुरी (एलीफैन्टा का धारापुरी) को पश्चिमी समुद्र की लक्ष्मी' तथा गोवा को 'रेवति द्वीप' कहा गया है । इसमें वरुण देवता की सेना का उल्लेख हुआ है।
अभिलेख में वर्णित है कि रविकीर्ति ने जिनेन्द्र का मन्दिर बनवाया जिसे मेगुता का मन्दिर भी कहा जाता है। इसी अभिलेख में सबसे पहली बार गुर्जर जाति का उल्लेख हुआ। लेख के अन्त के 37 वें पद्य में रविकीर्ति ने अपनी तुलना कालिदास एवं भारवि से की है।