चैत / चेदि वंश

प्राचीन भारत का इतिहास
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चैत / चेदि वंश

छठी सदी ईसा पूर्व में चेदि महाजनपद विद्यमान था, जिसमें संभवतः आधुनिक बुंदेलखंड तथा समीपवर्ती प्रदेश सम्मिलित थे। " चेतिय जातक " में इसकी राजधानी सोथीवती बताई गई है। महाभारत में इसी को शुक्तिमती कहा गया है। 

- कलिंग में चेदि राजवंश का उदय हुआ। इस वंश का सर्वाधिक विख्यात राजा खारवेल के पितामह " महामेघवाहन " को इस वंश का संस्थापक माना जाता हैं, लेकिन खारवेल के समय यह राजवंश वास्तविक रूप में उभरा। हाथीगुम्फा अभिलेख ( भुनेश्वर के निकट उड़यगिरी की पहाड़ियों में ) में खारवेल के आरम्भ से 13 वें राजवंश तक की प्रमुख घटनाओं का उल्लेख किया गया है। हाथीगुम्फा अभिलेख के अनुसार उसने " कलिंगाधिपति " और " कलिंग चक्रवती "। की उपाधियां धारण की। उसने" हत्थीसिंह " के पौत्र " ललाक  की पुत्री " से विवाह किया और उसने अपना प्रधान महिषी बनाया। इस अभिलेख के अनुसार 15 वर्ष की अवस्था में वह युवराज बनाया गया, युवराज के रूप में 9 वर्षों तक प्रशासनिक कार्यों में भाग लिया तथा 24 वर्ष की आयु में उसका राज्याभिषेक किया गया। 

खारवेल के हाथीगुम्फा अभिलेख से निम्न जानकारियां मिलती हैं 


( प्रथम वर्ष ) -- :- खारवेल ने कलिंग की राजधानी का पुनरुद्धार किया अर्थात कलिंग नगर में निर्माण कार्य किया।


( द्वितीय वर्ष ) -- :- खारवेल ने शातकर्णी की परवाह न करते हुए पश्चिम की ओर सेना भेजी। यह सेना कॉन्वेना नदी तक आगे बढ़ी तथा आगे इसने मुसिकनगर में आतंक फैला दिया।


( तृतीय वर्ष ) --- :- खारवेल ने अपनी राजधानी में संगीत, वाद्य, नृत्य, नाटक आदि के अभिनय द्वारा भारी उत्सव मनाया।

 ( चौथे वर्ष ) --- :- खारवेल ने बरार के भोजको तथा खानदेश और अहमदनगर के रठिको के विरुद्ध सैन्य अभियान किया। इसी विजय के प्रसंग में विद्याधर नामक जैनियों की एक शाखा के निवास स्थान का उल्लेख हुआ है तथा बताया गया है कि खारवेल ने वहां निवास किया था।

 ( पांचवे वर्ष ) --- :- खारवेल ने नदियों द्वारा निर्मित प्राचीन नहर का विस्तार करवाया तथा तनसुलिसे उस नहर को अपनी राजधानी ले आया। इस नहर का निर्माण तीन सौ वर्ष पूर्व नन्द राजा द्वारा किया गया था।

 ( छठे वर्ष ) --- :- खारवेल ने एक लाख मुद्रा व्यय करके अपनी प्रजा को सुखी रखने के अनेक प्रयास किया। उसने ग्रामीण तथा शहरी जनता के कर माफ कर दिए।

 ( सातवें वर्ष ) --- :- इस वर्ष का विवरण संदिग्ध तथा अस्पष्ट है।

 ( आठवें वर्ष ) --- :- वह बराबर की पहाड़ी तक पहुंच गए एवं " गोरठगिरी " के किले को नष्ट कर दिया।

 ( नौवे वर्ष ) --- :- उतर भारत की विजय के उपलक्ष्य में नगर के दोनों किनारों पर महाविजय प्रासाद बनवाए।

( दसवें वर्ष ) --- :- गंगा - घाटी पर आक्रमण किया, परन्तु कोई विशेष सफलता नहीं मिली। 

 ( ग्यारहवें वर्ष ) --- :- 113 वर्ष पुराने " संघत्रमिरदेशसंघातकम " को पराजित किया। खारवेल ने पीठुंड नगर में गधों द्वारा हल चलवाया

 ( बारहवें वर्ष ) --- :- वह मगध के राजा बृहस्पतिमित्र को पराजित कर जिन की प्रतिमा एवं संपति लूटकर ले गया एवं उससे भुनेश्वर के भव्य मंदिर का निर्माण करवाया। उसने बारहवें वर्ष ही पुनः दक्षिण भारत का अभियान किया। बताया जाता है कि उसने जल तथा थल दोनों ही मार्गों से पांडेयो की राजधानी पर आक्रमण बोला था।

 ( तेरहवें वर्ष ) --- :- खारवेल का झुकाव जैन धर्म की ओर हो गया और इसने हाथीगुम्फा अभिलेख लिखवाया। 13वें वर्ष में ही खारवेल ने कुमारी पहाड़ी पर जैन भिक्षुओं के लिए गुफ़ाएं बनवाई। कुमारगिरी से तात्पर्य उदयगिरी तथा खंडगिरी से है।

~ 04 Mar, 2025

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