• भारत के पुनर्जागरण के प्रणेता और एक अथक समाज सुधारक राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में हुआ था।
• इनकी प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषा में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के कार्य तथा प्लेटो और अरस्तू के बारे में अध्ययन किया तदोपरांत बनारस में उन्होंने संस्कृत में वेद तथा उपनिषद का अध्ययन किया।
• राजा राम मोहन राय पश्चिमी आधुनिक विचारों से बहुत प्रभावित थे और बुद्धिवाद तथा आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर बल देते थे।
• एकेश्वरवाद को वे एक सुधारात्मक कदम मानते थे। उनका मानना था कि एकेश्वरवाद ने मानवता के लिये एक सार्वभौमिक मॉडल प्रदान किया है।
• उनका मानना था कि जब तक महिलाओं को अशिक्षा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसे अमानवीय रूपों से मुक्त नहीं किया जाता, तब तक हिंदू समाज प्रगति नहीं कर सकता।
राजा राम मोहन राय के महत्त्वपूर्ण योगदानः
• उन्होंने आत्मीय सभा, कलकत्ता यूनिटेरियन एसोसिएशन और वर्ष 1828 में ब्रह्म सभा (जो बाद में ब्रह्म समाज बन गया) की स्थापना की।
• वह महिलाओं की स्वतंत्रता और विशेष रूप से सती एवं विधवा पुनर्विवाह के उन्मूलन पर अपने अग्रणी विचार और कार्रवाई के लिये जाने जाते थे।
• उन्होंने बाल विवाह, महिलाओं की अशिक्षा और विधवाओं की अपमानजनक स्थिति का विरोध किया तथा महिलाओं के लिये विरासत तथा संपत्ति के अधिकार की मांग की।
• राजा राम मोहन राय ने तीन पत्रिकाओं- ब्राह्मणवादी पत्रिका, बंगाली साप्ताहिक पत्रिका संवाद कौमुदी और फारसी साप्ताहिक पत्रिका मिरात-उल-अकबर का प्रकाशन किया।
• आधुनिक तर्कसंगत पाठों के साथ-साथ धार्मिक सिद्धांतों को सही ढंग से संयोजित करने के उनके प्रयासों ने उन्हें 1822 में एंग्लो-वैदिक स्कूल और उसके बाद 1826 में वेदांत कॉलेज की स्थापना करने के लिये प्रेरित किया।
ब्रह्म समाज क्या था?
• वर्ष 1828 में स्थापित ब्रह्म सभा जिसे बाद में ब्रह्म समाज का नाम दिया गया मुख्य रूप से प्रार्थना, ध्यान और शास्त्रों को पढ़ने पर केंद्रित था।
• यह आधुनिक भारत में पहला बौद्धिक सुधार आंदोलन था। इससे भारत में तर्कवाद और प्रबोधन का उदय हुआ जिसने अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रवादी आंदोलन में योगदान दिया।
• यह आधुनिक भारत के सभी सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक आंदोलनों का अग्रदूत था। यह वर्ष 1866 में दो भागों में विभाजित हो गया, अर्थात् भारत के ब्रह्म समाज का नेतृत्व केशव चन्द्र सेन ने और आदि ब्रह्म समाज का नेतृत्व देवेंद्रनाथ टैगोर ने किया।