महाशिलाकंटाक, रथमुसल प्राचीन भारत के अस्त्र

इतिहास महत्वपूर्ण तथ्य
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महाशिलाकंटाक, रथमुसल प्राचीन भारत के अस्त्र


 "रथमुसल" युद्ध हथियार चित्र -1 

 "महाशिलाकंटाक" युद्ध हथियार  चित्र - 2 

लगभग २५०० सालो पहले भारत की धरती पर सम्राट  अजातशत्रु और वज्जि साम्राज्य के बीच गंगा के किनारे मिलने वाले मूल्यवान हीरे ,मोतियो ओर सोने के खनन के लिए भयानक युद्ध हुआ, वज्जि साम्राज्य और अजातशत्रु की सेना की ताकत बराबर थी।


लेकिन अजातशत्रु के वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कार किये गए इन 2 शस्त्रों का नाम "महाशिलकंटाक और रथमुसल" था।


इन हथियारों ने वज्जि साम्राज्य की सेना को काटकर रख दिया, अजातशत्रु ने ये युद्ध निर्णायक रूप से जीतकर मगध साम्राज्य का विस्तार किया। यही हथियार बाहुबली फिल्म में भी दिखाए गये थे आप लोगों ने देखा होगा।

~ 04 Sep, 2024

ताजमहल के अनसुने रहस्य: क्या आप जानते हैं?

ताजमहल भारत के आगरा शहर में स्थित एक भव्य स्मारक है, जिसे मुगल सम्राट शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में बनवाया था। यह सफेद संगमरमर से निर्मित एक अद्भुत कृति है और इसे प्रेम का प्रतीक माना जाता है। ताजमहल को 1632 में बनाना शुरू किया गया था और.....

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विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए इतिहास विषय से संबंधित महत्वपूर्ण किताबें

भारतीय इतिहास UPSC, SSC, बैंकिंग, रेलवे, NDA, CDS, UGC NET और अन्य सरकारी परीक्षाओं के लिए एक महत्वपूर्ण विषय है। सही किताबों का चयन आपकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

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गान्धार कला की विशेषताएं

गान्धार-शैली की विशेषताऐं -

1 . गान्धार-शैली, शैली की दृष्टि से विदेशी होते हुए भी इसकी आत्मा भारतीय है। इस शैली का प्रमुख लेख्य विषय भगवान् बुद्ध तथा बोधिसत्व हैं।


2. गान्धार-शैली की आत्मा भारतीय होते हुए भी इस पर यूनानी (Hellenistic) प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसीलिए गौतम बुद्ध की अधिकांश.....

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मथुरा कला शैली की विशेषताएं

इस शैली का विकास कुषाण शासक कनिष्क के समय उत्तर भारत में हुआ

मथुरा-कला में बौद्ध धर्म से सम्बन्ध रखने वाली हजारों मूर्तियों का निर्माण हुआ । मथुरा-शैली की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं, जिन्हें संक्षेप में हम इस प्रकार देख सकते हैं-

(1) मथुरा-शैली में लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है।.....

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मथुरा  कला शैली की विशेषताएं

नयनार कोन थे?

दक्षिण भारत में शिवपूजा का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। पल्लव काल में शैव धर्म का प्रचार-प्रसार नयनारों द्वारा किया गया। नयनार सन्तों की संख्या 63 बतायी गयी है जिनमें अप्पार, तिरुज्ञान, सम्बन्दर, सुन्दरमूर्ति, मणिक्कवाचगर आदि के नाम उल्लेखनीय है। इनके भक्तिगीतों को एक साथ देवालय में संकलित किया गया। इनमें.....

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