प्राचीन मृदभाण्ड हमारे अतीत की झलकियां हैं। ये मिट्टी के बर्तन न केवल उस समय की संस्कृति और कला को दर्शाते हैं, बल्कि उस युग के लोगों की जीवनशैली और आर्थिक स्तर का भी संकेत देते हैं। भारत में विभिन्न प्रकार की मृदभाण्ड परंपराएं प्रचलित रही हैं, जिनका विकास क्रमिक रूप से हुआ है।
विभिन्न मृदभाण्ड परंपराओं का क्रम और संबंधित काल
1. गैरिक मृदभाण्ड (2000-1200 ई.पू.)
- यह सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) से पूर्व की मृदभाण्ड परंपरा है।
- इसे 'ताम्र संचय' या 'प्राक् हड़प्पा' काल से भी जोड़ा जाता है।
- कुछ विद्वानों ने इसे 'परवर्ती हड़प्पा' काल से भी संबंधित किया है।
- प्रमुख स्थल: गैरिक (बलूचिस्तान), कालीबंगा (गुजरात), सौथी (हरियाणा) आदि।
2. काले और लाल मृदभाण्ड (1200-1000 ई.पू.)
- यह हड़प्पा सभ्यता (उत्तर हडप्पा) से संबंधित है।
- इसे 'महापाषाण' और 'प्रागैतिहासिक' काल से भी जोड़ा जाता है।
- कुछ विद्वानों ने इसे 'आर्यों का बर्तन' या 'वैदिक मृदभाण्ड' कहा है।
3. चित्रित धूसर मृदभाण्ड (1000-600 ई.पू.)
- यह आर्य संस्कृति के प्रतिनिधि मृदभाण्ड हैं।
- इसका संबंध उत्तर वैदिक काल और महाभारत काल से है।
4. उत्तरी कृष्ण पॉलिशदार मृदभाण्ड (600-300 ई.पू.)
- यह द्वितीय नगरीकरण, महाजनपद काल, बौद्ध काल और मौर्य काल से जुड़े हैं।
5. लाल पॉलिश वाले मृदभाण्ड (200 ई.पू. - 200 ई.)
- यह मौर्योत्तर काल और गुप्त युग से संबंधित हैं।
- इन मृदभाण्डों पर लाल रंग का पॉलिश किया गया था।
- यह शहरी केंद्रों और संपन्न वर्गों में प्रचलित थे।
मृदभाण्डों का महत्व
मृदभाण्ड प्राचीन काल की जीवन शैली, कला, व्यापार, धर्म और संस्कृति के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनका अध्ययन हमारे लिए कई कारणों से महत्वपूर्ण है:
- सामाजिक-आर्थिक स्तर का पता लगाना: मृदभाण्डों की गुणवत्ता, आकार, और सजावट से उस समय के समाज के आर्थिक स्तर और जीवन स्तर का अनुमान लगाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, चमकीले लाल रंग के पॉलिश किए गए मृदभाण्ड अमीर वर्गों से संबंधित थे।
- कला और शिल्प का अध्ययन: मृदभाण्डों पर बने चित्र, नक्काशी और डिजाइन से उस युग की कला और शिल्प कौशल का पता चलता है।
- धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का अध्ययन: कुछ मृदभाण्डों पर बने चित्र और प्रतीक उस समय की धार्मिक मान्यताओं और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं।
- व्यापार संबंधों का पता लगाना: मृदभाण्डों के आकार और प्रकार से उस समय की खाद्य आदतों और पकाने की विधियों का पता चलता है।
- आबादी के विस्तार का अनुमान:मृदभाण्डों के अवशेषों से प्राचीन बस्तियों और शहरों के विस्तार का अनुमान लगाया जा सकता है।
- युगों का निर्धारण:मृदभाण्डों की विभिन्न शैलियों और प्रकारों से उनके निर्माण के समय का अनुमान लगाकर विभिन्न युगों को निर्धारित किया जा सकता है।
इस प्रकार, मृदभाण्ड प्राचीन काल की जीवन शैली, कला, व्यापार, धर्म और संस्कृति के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे हमारे इतिहास को समझने में अनमोल सहायक हैं।