वर्धन वंश के इतिहास का सर्व प्रमुख स्रोत 'हर्षचरित' है जो ऐतिहासिक विषय पर लिखित प्रथम 'चरित काव्य' तथा 'गद्यकाव्य' है। बाणभट्ट मूलतः प्रीतिकूट गांव के वात्स्यायन गोत्रीय तथा भृगुवंशी ब्राह्मणों से संबंधित था। उसने अपने भाइयों (मुख्यता श्यामल) की इच्छा पर 'हर्षचरित' नामक काव्य संग्रहित किया। जो सर्वदीपभुज महाराजाधिराज हर्ष की जीवनगाथा है । हर्ष व बाणभट्ट की पहली मुलाकात अचिरावती नदी पर स्थित मणितारा स्कंधावार में हुई। हर्षचरित में 8 अध्याय हैं जिन्हें उच्छवास कहा जाता है प्रथम तीन उच्छवास में बाण की आत्मकथा लिखी हुई है--
उच्छ्वास:
प्रथम-- इसका कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है।
द्वितीय-- इसमें बाण का प्रारंभिक वंश का परिचय तथा हर्ष से उसकी मुलाकात का विवरण दिया गया है।
तृतीय-- श्रीकंठ जनपद तथा स्थानीश्वर(थानेश्वर) का वर्णन तथा 'पुष्यभूति' और शैव संयासी भैरवाचार्य के पारस्परिक संबंधों का उल्लेख।
चतुर्थ-- 'प्रभाकरवर्धन संबंधी विवरण', 'राज्यवर्धन', 'हर्षवर्धन', राज्यश्री के जन्म, बचपन तथा राज्यश्री का कन्नौज के गृहवर्मा से विवाह का विवरण।
पंचम-- हूणों के उपद्रव को दबाने के लिए राज्यवर्धन को भेजना, पीछे प्रभाकरवर्धन की बीमारी तथा मृत्यु का विवरण।
षष्ठम्-- राज्यवर्धन द्वारा भिक्षु बनाने की इच्छा, ग्रह वर्मा की हत्या का समाचार राज्यवर्धन द्वारा परिस्थिति वश राजगद्दी ग्रहण करने तथा मालव राज के विरुद्ध अभियान व विजय तथा शशांक द्वारा राज्यवर्धन की हत्या करने तथा हर्ष द्वारा अपने सामंत शत्रुओं से बदला लेने के लिए प्रतिज्ञा का वर्णन।
सप्तम-- हर्ष की दिग्विजय यात्रा, कामरूप के शासक भास्करवर्मा के राजदूत हंसबेग द्वारा मैत्री प्रस्ताव स्वीकार किए जाने का विवरण।
अष्ठम:- राज्यश्री की खोज, पाराशरी बौद्ध भिक्षु दिवाकर मित्र से भेंट तथा राज्यश्री की प्राप्ति के साथ हर्षचरित का विवरण अचानक समाप्त हो जाता है। आगे ना तो हर्ष की विजयो का वर्णन है न अन्य राज्यों से संबंधों का वर्णन । अध्याय 8 को "विंध्याद्रि निवेशन" भी कहा जाता है। इसमें विंध्य के जंगलों में रहने वाले विभिन्न में धार्मिक संप्रदायों का वर्णन मिलता है।
हर्षचरित में घटनाओं का वर्णन करते समय तिथियों का कही पर भी उल्लेख नहीं किया गया है। कावेल तथा थामस ने हर्षचरित का अंग्रेजी अनुवाद किया है।