वर्धन वंश के इतिहास का सर्व प्रमुख स्रोत 'हर्षचरित' है जो ऐतिहासिक विषय पर लिखित प्रथम 'चरित काव्य' तथा 'गद्यकाव्य' है। बाणभट्ट मूलतः प्रीतिकूट गांव के वात्स्यायन गोत्रीय तथा भृगुवंशी ब्राह्मणों से संबंधित था। उसने अपने भाइयों (मुख्यता श्यामल) की इच्छा पर 'हर्षचरित' नामक काव्य संग्रहित किया। जो सर्वदीपभुज महाराजाधिराज.....

परिचय
गुरु नानक देव जी (1469-1538 ई.) सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु थे। उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को तलवंडी (वर्तमान ननकाना साहिब, पाकिस्तान) में हुआ था। वे अपने आध्यात्मिक संदेश और समाज सुधार के कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैं। उन्होंने धार्मिक भेदभाव का विरोध किया और मानवता, समानता, और प्रेम का संदेश दिया।
जीवन और यात्राएँ
गुरु नानक ने असम से बगदाद, तिब्बत से श्रीलंका तक विस्तृत यात्राएँ कीं, जिन्हें उदासियाँ कहा जाता है। इन यात्राओं के दौरान उन्होंने विभिन्न धार्मिक और सामाजिक विषयों पर उपदेश दिए और लोगों को ईश्वर की भक्ति और सच्चे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
मुख्य शिक्षाएँ
- हिंदू-मुस्लिम एकता: गुरु नानक ने धार्मिक भेदभाव का विरोध करते हुए सभी धर्मों में एकता और समानता पर बल दिया।
- अवतारवाद और कर्मकांड का विरोध: उन्होंने अंधविश्वास, जातिवाद और बाहरी दिखावे को अस्वीकार किया।
- निर्गुण भक्ति का समर्थन: वे निर्गुण भक्ति पर विश्वास रखते थे, जहाँ ईश्वर को निराकार और सर्वव्यापी माना जाता है।
- समानता और सेवा: उन्होंने जाति, लिंग और आर्थिक स्थिति से परे सभी को समान माना और लंगर (सामूहिक भोजन) की प्रथा शुरू की।
- स्त्रियों की भूमिका: उन्होंने समाज में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताया और उन्हें सम्मान देने की बात कही।
परिवार और समकालीन शासक
गुरु नानक की पत्नी का नाम सुलाखनी था, और उनके दो पुत्र थे – श्रीचंद और लक्ष्मीदास। वे सिकंदर लोदी, बाबर और हुमायूं के समकालीन थे। उन्होंने संगत की परंपरा शुरू की, जिसमें लोग बिना किसी भेदभाव के एक साथ मिलकर भक्ति और सेवा करते थे।
अंतिम समय और विरासत
गुरु नानक ने अपने अंतिम दिन पंजाब के करतारपुर में बिताए। उनके प्रिय शिष्य भाई मरदाना हमेशा उनके साथ रहे। उनका संदेश आज भी गुरु ग्रंथ साहिब के रूप में जीवित है, जो सिख धर्म का पवित्र ग्रंथ है।
~ 29 Mar, 2025