इतिहास से जुडी प्रमुख्य शाखायें

इतिहास महत्वपूर्ण तथ्य
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इतिहास से जुडी प्रमुख्य शाखायें

  1.  एपीग्राफी (Epigraphy): यह प्राचीन शिलालेखों, अभिलेखों और पत्थरों पर खुदी लिखावटों का अध्ययन करने वाली शाखा है। इसका उद्देश्य प्राचीन समाजों के इतिहास, भाषा और संस्कृति को समझना है।
  2. न्यूमिस्मेटिक्स (Numismatics): यह सिक्कों, मुद्राओं और प्राचीन मुद्रा प्रणालियों का अध्ययन करने वाली शाखा है। इसके माध्यम से हम प्राचीन राज्यों की आर्थिक स्थिति, व्यापार और शासन प्रणाली के बारे में जान सकते हैं।
  3. आर्कियोलॉजी (Archaeology): यह प्राचीन स्थलों, बसावटों, कलाकृतियों और सांस्कृतिक अवशेषों का अध्ययन करने वाली शाखा है। इसमें खुदाई, सर्वेक्षण और प्रामाणिक सामग्रियों के विश्लेषण शामिल हैं।
  4. पैलियोग्राफी (Paleography): यह प्राचीन लिपियों, लिखावटों और हस्तलिखित पांडुलिपियों का अध्ययन करने वाली शाखा है। इसका उद्देश्य विभिन्न युगों की लिपियों और लेखन शैलियों को समझना है।
  5. फिलोलॉजी (Philology): यह भाषाशास्त्र की एक शाखा है जो प्राचीन साहित्य और ऐतिहासिक स्रोतों की भाषा का अध्ययन करती है। इसका उद्देश्य भाषा के इतिहास, विकास और परिवर्तन को समझना है।
  6. सिग्लियोग्राफी (Sigillography): यह प्राचीन मुहरों, सीलों और छाप का अध्ययन करने वाली शाखा है। इसके माध्यम से हम प्राचीन प्रशासन, व्यापार और संस्कृति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  7. एंथ्रोपोलॉजी (Anthropology): यह मानव जाति और उनकी संस्कृतियों का अध्ययन करने वाली विज्ञान शाखा है। पुरातत्व मानवशास्त्र इसकी एक उपशाखा है जो मानव समाजों के विकास और परिवर्तन का अध्ययन करती है।
  8. पैलियोंटोलॉजी (Paleontology): यह जीवाश्म विज्ञान की शाखा है जो प्राचीन पृथ्वी पर रहने वाले जीवों के अवशेषों और जीवाश्मों का अध्ययन करती है। इसका उद्देश्य प्राचीन जीवन के स्वरूप और विकास को समझना है।

~ 14 May, 2024

महाशिलाकंटाक, रथमुसल प्राचीन भारत के अस्त्र


 "रथमुसल" युद्ध हथियार चित्र -1 

 "महाशिलाकंटाक" युद्ध हथियार  चित्र - 2 

लगभग २५०० सालो पहले भारत की धरती पर सम्राट  अजातशत्रु और वज्जि साम्राज्य के बीच गंगा के किनारे मिलने वाले मूल्यवान हीरे ,मोतियो ओर सोने के खनन के लिए भयानक युद्ध हुआ, वज्जि साम्राज्य और.....

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महाशिलाकंटाक, रथमुसल प्राचीन भारत के अस्त्र

गान्धार कला की विशेषताएं

गान्धार-शैली की विशेषताऐं -

1 . गान्धार-शैली, शैली की दृष्टि से विदेशी होते हुए भी इसकी आत्मा भारतीय है। इस शैली का प्रमुख लेख्य विषय भगवान् बुद्ध तथा बोधिसत्व हैं।


2. गान्धार-शैली की आत्मा भारतीय होते हुए भी इस पर यूनानी (Hellenistic) प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। इसीलिए गौतम बुद्ध की अधिकांश.....

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गान्धार कला की विशेषताएं

मथुरा कला शैली की विशेषताएं

इस शैली का विकास कुषाण शासक कनिष्क के समय उत्तर भारत में हुआ

मथुरा-कला में बौद्ध धर्म से सम्बन्ध रखने वाली हजारों मूर्तियों का निर्माण हुआ । मथुरा-शैली की अपनी कुछ विशेषताएँ हैं, जिन्हें संक्षेप में हम इस प्रकार देख सकते हैं-

(1) मथुरा-शैली में लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है।.....

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मथुरा  कला शैली की विशेषताएं

नयनार कोन थे?

दक्षिण भारत में शिवपूजा का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ। पल्लव काल में शैव धर्म का प्रचार-प्रसार नयनारों द्वारा किया गया। नयनार सन्तों की संख्या 63 बतायी गयी है जिनमें अप्पार, तिरुज्ञान, सम्बन्दर, सुन्दरमूर्ति, मणिक्कवाचगर आदि के नाम उल्लेखनीय है। इनके भक्तिगीतों को एक साथ देवालय में संकलित किया गया। इनमें.....

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नयनार कोन थे?

राजा राममोहन राय

• भारत के पुनर्जागरण के प्रणेता और एक अथक समाज सुधारक राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को बंगाल के राधानगर में हुआ था।

• इनकी प्रारंभिक शिक्षा फारसी और अरबी भाषा में पटना में हुई, जहाँ उन्होंने कुरान, सूफी रहस्यवादी कवियों के कार्य तथा प्लेटो और अरस्तू.....

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राजा राममोहन राय