8 अप्रैल, 1842 ई. को बुन्देलखण्ड में बुन्देला विद्रोह की भागीदारी अंकित है। जिसके नेतृत्वकर्ता नरहट के मधुकर शाह एवं गणशज, चन्द्रापुर के जवाहर सिंह, गुढ़ा के विक्रमजीत सिंह, चिरगांव के बखत सिंह, जाखलौन एवं पिपरिया के भुजबल सिंह व महीप सिंह, हीरापुर के राजा हिरदेशशाह, मदनपुर के डेलन सिंह एवं दिलवाड़ा के गौड़ ठाकुर, नटवर सिंह जैसे अनेक बुन्देला, लोधी एवं गौड़ ठाकुरों ने भागीदारी निभायी।
चार्ल्स फ्रेजर ने बुन्देला विद्रोह के दमन हेतु रणनीति तैयार की थी।
बुंदेला विद्रोह का दमन करने के लिए ठाकुर मर्दन सिंह एवं राजा बखतवली ग्वालियर के सिंधिया, ओरछा की रानी आदि ने अंग्रेजों का सहयोग दिया है।
शाहगढ़ राजा बखतवली एवं बानपुर राजा मर्दन सिंह से अंग्रेजों ने मदद माँगी, चूँकि बुन्देला विद्रोही इनकी रियासतों में भी लूटपाट कर रहे थे एवं ये दोनों राजा अंग्रेजों की मदद से सिंधिया द्वारा अधिग्रहीत अपना क्षेत्र प्राप्त करना चाहते थे, अतः ये दोनों राजा अंग्रेजों की मदद के लिए तैयार हो गए।
शाहगढ़ राजा बखतवली ने 22 दिसंबर, 1842 ई. को हीरापुर के राजा हिरदेश शाह को पकड़कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया। बानपुर के राजा मर्दन सिंह ने 24 जनवरी, 1844 ई. को प्रमुख विद्रोही मधुकर शाह को पकड़कर अंग्रेजों के हवाले कर दिया।