1793 ई. में लार्ड कार्नवालिस द्वारा लागू किया गया स्थायी बन्दोबस्त (Permanent Settlement) ब्रिटिश भारत की एक प्रमुख भू-राजस्व व्यवस्था थी। यह व्यवस्था मुख्य रूप से बंगाल, बिहार, उड़ीसा और वाराणसी (उत्तर प्रदेश) में लागू की गई थी। इसका उद्देश्य भू-राजस्व को स्थायी रूप से निर्धारित करना और एक वफादार जमींदार वर्ग का निर्माण करना था।
स्थायी बन्दोबस्त की पृष्ठभूमि
- 1790 ई. में कार्नवालिस ने 10 साल के लिए एक प्रायोगिक बन्दोबस्त लागू किया।
- 1793 ई. में बोर्ड ऑफ कंट्रोल की अनुमति के बाद इसे स्थायी बन्दोबस्त में बदल दिया गया।
- इस व्यवस्था को इस्तमरारी बन्दोबस्त, जागीरदारी व्यवस्था या मालगुजारी प्रणाली के नाम से भी जाना जाता था।
जमींदारों की भूमिका पर विवाद
इस व्यवस्था को लागू करने से पहले ब्रिटिश अधिकारियों के बीच जमींदारों की भूमिका को लेकर मतभेद थे:
- सर जॉन शोर का मानना था कि जमींदारों को भूमि का स्वामी माना जाना चाहिए।
- जेम्स ग्रांट का विचार था कि भूमि पर सरकार का अधिकार होना चाहिए और जमींदार केवल कर संग्रहकर्ता हैं।
अंततः कार्नवालिस ने जॉन शोर के सुझाव को स्वीकार किया और जमींदारों को भूमि का मालिक बना दिया गया।
स्थायी बन्दोबस्त के प्रमुख प्रावधान
- जमींदारों को भूमि का स्वामी माना गया और उन्हें वंशानुगत अधिकार दिए गए।
- जमींदारों को कुल राजस्व का 10/11 भाग कंपनी को देना होता था और 1/11 भाग अपने पास रख सकते थे।
- यदि जमींदार निर्धारित तिथि तक राजस्व नहीं जमा करते थे, तो सूर्यास्त कानून (Sunset Law, 1794) के तहत उनकी जमींदारी जब्त कर ली जाती थी।
- इस व्यवस्था के तहत किसानों के अधिकारों की उपेक्षा की गई, जिससे वे जमींदारों के शोषण का शिकार हो गए।
स्थायी बन्दोबस्त के प्रभाव
सकारात्मक प्रभाव (कंपनी के लिए)
- कंपनी को निश्चित आय का स्रोत मिल गया।
- एक वफादार जमींदार वर्ग का निर्माण हुआ, जो ब्रिटिश हितों का समर्थन करता था।
नकारात्मक प्रभाव
- किसानों का शोषण: जमींदारों ने अत्यधिक लगान वसूला और किसानों को बेदखल किया जाने लगा।
- अनुपस्थित भू-स्वामित्व (Absentee Landlordism): कई जमींदार शहरों (जैसे कलकत्ता) में रहने लगे और दलालों के माध्यम से राजस्व वसूली करने लगे।
- कृषि विकास की उपेक्षा: जमींदारों ने भूमि सुधार में कोई रुचि नहीं दिखाई।
- कानूनी विवादों में वृद्धि: भूमि स्वामित्व को लेकर अदालती मामले बढ़ गए।
विद्वानों के विचार
- रमेशचन्द्र दत्त ने इस व्यवस्था की प्रशंसा करते हुए इसे "ब्रिटिशों का सबसे बुद्धिमान और सफल कार्य" बताया।
- राजा राममोहन राय ने भी इसका समर्थन किया।
- हालाँकि, जेम्स ग्रांट जैसे कई अधिकारियों ने इसका विरोध किया था।
निष्कर्ष
स्थायी बन्दोबस्त ने ब्रिटिश सरकार को स्थिर आय प्रदान की, लेकिन इसने किसानों की दशा को बिगाड़ दिया और जमींदारों के शोषण को बढ़ावा दिया। यह व्यवस्था भारतीय कृषि व्यवस्था में एक दीर्घकालिक बदलाव लेकर आई, जिसके प्रभाव आज भी देखे जा सकते हैं।
क्या आप जानते हैं?
- स्थायी बन्दोबस्त ब्रिटिश भारत के 19% क्षेत्र में लागू था।
- बनारस में जोनाथन डंकन ने इस व्यवस्था को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इस व्यवस्था ने भारतीय कृषि और समाज को गहराई से प्रभावित किया। आपके विचार में इसके क्या फायदे और नुकसान थे? कमेंट में बताएं!